Ramsnehi Sampraday

पंचम आचार्य श्री हरिदास जी महाराज

पंचम आचार्य श्री हरिदास जी महाराज

आपका जन्म सं. 1860 में ग्राम आगूंचा में दाहिमा ब्राहम्ण कुल में हुआ। बचपन में ही आप में वैराग्य भावना उत्पन्न हो गई। फलस्वरूप आप शाहपुरा आये। उस समय श्री दूल्हैरामजी महाराज गादीधर थे। आपने आचार्य श्री से दीक्षा देने हेतु प्रार्थना की। इस पर आचार्य श्री ने कहा कि यहां तो कईं सन्त हैं। ग्राम बिसन्या में श्री रामदास जी महाराज के कोई षिष्य नहीं हैं अतः जाकर उनके षिष्य बन जाओ। संवत् 1872 में जाकर आपने दीक्षा ग्रहण की। आपका नाम हरिदास रखा गया। वहीं गुरू के पास आपकी षिक्षा हुई। निरन्तर साधना कर आपने अपने जीवन को उच्च एवं महान बनाया। आप उच्च कोटि के महात्मा हुए और ऐसा समय आया कि आप रामस्नेही सम्प्रदाय के आचार्य पद पर विभूषित हुए वैसे आप गूदड सम्प्रदाय दाॅंतडा की शाखा के सन्त थे। आप रामनन्दी तिलक लगाते एवं दाॅंतडा के सन्तों की भाॅंति टोपी पहनते थे। पर प्रभावी सन्त होने के कारण शुक्रवार मगसर सुद 6 सं. 1905 में आपको गादी पर विराजमान किया। आप महान तेजस्वी थे एवं असाधारण योगी पुरूष थे। इस बारे में एक घटना प्रसिद्ध है।

प्रतिवर्ष एक भक्त श्री रामनिवास धाम के व गूदडी जी के दर्षन करने आता था। एक वर्ष उसका पुत्र बहुत बीमार हो गया, यहां तक कि वह अन्तिम सांसे ले रहा था। इधर शाहपुरा में फूलडोल का कार्यक्रम चल रहा था। आचार्य श्री गादी पर विराजमान थे उस भक्त ने अपने पुत्र की ऐसी विकट स्थिति देखकर आचार्य श्री हरिदासजी महाराज का ध्यान किया करूण शब्दों में प्रार्थना की। कहते हैं कि आचार्य श्री ने उस भक्त की प्रार्थना सुनी। आचार्य श्री तुरन्त अपने मुंह को चादर से ढक कर समाधिस्थ हो गये। दूसरी देह धारण कर आप तुरन्त उस भक्त के घर में प्रकट हो गये पिता पुत्र दोनों को दर्षन दिया। पुत्र के सिर पर हाथ रख कर उसे राम मन्त्र सुनाया। पिता ने आचार्य श्री का चरणोदक अपने पुत्र को पिलाया। भक्त के पुत्र की जीवन रक्षा हो गई, वह उसी समय से स्वास्थ्य लाभ करने लगा। आचार्य श्री वापस ध्यान में पधार गये। इस बीच उपस्थित सन्तों व सेवकों को विचार हुआ कि क्या बात हुई? महाराज श्री इस प्रकार मुख को ढक कर एक दम मौन क्यों? जब समाधि खुली महाराज को पसीना पसीना हो रहा था। तब तो सबको और भी अधिक आष्चर्य हुआ, और साहस करके महाराज से इसका कारण पूछा। पहले तो महाराज श्री ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया पर सबके बहुत अधिक आग्रह करने से सारी बात बतादी सब बडे आनंदित हुए। जब भक्त दर्षन करने के लिये आया तो लोगों ने कहा कि इस बार देरी से क्यों आये? तब उसने सारी घटना सुना दी जो आचार्य श्री ने बताई थी। आप ऐसे सिद्ध एवं योगी पुरूष थे। बारादरी में राजाधिराज शाहपुरा की बैठक महाराज के सन्मुख थी। पर राजाधिराज लक्ष्मणसिंह जी को आपका तेज सहन नहीं हुआ। तब आपसे निवेदन कर दूसरी ओर बैठने की आज्ञा चाही। तब से शाहपुरा राजाधिराज गादी के पीछे की ओर बैठने लगे। आपने वाणी भी लिखी है जिसका प्रकाषन रामस्नेही संदेष द्वारा हो गया है। आप वेदान्त के प्रखर विद्वान एवं वाणी के महान ज्ञाता थे। आपने ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए सम्प्रदाय का खूब प्रचार प्रसार किया। आपके समय में श्री रामनिवास धाम में हरिनिवास नाम का भवन जिसमें आचार्य श्री निवास करते थे। आपकी विद्वता के कारण बडे बडे राजा महाराजा आपके चरणों में नतमस्तक हुए। चैत्र सुद गुरूवार सं. 1921 को आप ब्रहम्लीन हुए। आपने 15 वर्ष 4 महीना 3 दिन समाज का शासन किया। चाकसू, आलोट ताल एवं बडली आपके स्थान हैं।

आपकी षिष्य परम्परा अद्यावधि चल रही है आपने शाहपुरा से बाहर भी कईं चातुर्मास किये जिनमें रतलाम, दिल्ली, बीकानेर, जोधपुर आदि प्रमुख है। वि. सं. 1913 में चित्तौड चातुर्मास हुआ जिसमें 72 संत साथ में थे।

ब्रहम विदेही पुरूष, श्री हरिदास महाराज।

ताकि महिमा कहा कहुॅं, पार न पावूं आज।।

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