श्री हरिदास जी महाराज की आरती
आरती राम गुरूजन केरी, तन मन धन सब वांरू फेरी।।टेर।।
देही देवल माहि अमूरत, ताकी सेव करे नित सुरति।।1।।
आरती सूंल बनाऊं नीकी, वस्तु अनुपम धरहुं नजीकी।।2।।
द्वीप द्वीप सातों परकाषा जांके अन्तर माहि उजासा।।3।।
झालर घंट कंठ मध बाजे, शब्द अनाहद अद्भुत गाजे।।4।।
शंक निषंक होय गुण गाउं, लोक लाज सबही बिसराउं।।5।।
यह आरती हरिदास उचारे, सदा शरण में रह हूं तुम्हारे।।6।।