Ramsnehi Sampraday

नवम आचार्य श्री दयाराम जी महाराज

नवम आचार्य श्री दयाराम जी महाराज

आपका जन्म बाघथला मेवाड के राजपूत परिवार में वि.सं. 1918 में हुआ था। बचपन से ही आपका मन सांसारिकता में नहीं लगा। आप प्रायः चिन्तन मुद्रा में रहते थे। फलस्वरूप 11 वर्ष की अवस्था में ही वि. संवत 1929 में आपने दीक्षा ग्रहण करली। महाराज श्री गंगादास जी षिष्य परम्परा में साध श्री षिवदासजी के आप षिष्य बने। वैराग्य धारण करने के बाद आपने हिन्दी एवं संस्कृत भाषा का अच्छा अध्ययन किया। आपने रमल ज्योतिष का भी पूर्ण रूपेण ज्ञान प्राप्त किया। कई वर्षों तक आपने ईष्वर भजन एवं धर्मोंपदेष करते हुए भ्रमण किया। आचार्य श्री धर्मदास जी महाराज जब परम धाम पधारे तब आप सांगरिया ग्राम में विराजे रहे थे। आपसे किसी ने जिज्ञासा व्यक्त कि आचार्य पद पद अब कौन आसीन होंगे? आपने सरल स्वभाव से रमल का प्रयोग किया तो पता लगा कि मेरे स्वयं का ही चुनाव सन्त करेंगे। उसी समय में शाहपुरा से पत्र आया जिसमें आचार्य का निर्वाचन कराने हेतु आपसे शाहपुरा पधारने का आग्रह किया। उस समय सांगरिया और बिसन्या के सन्त गादी एवं गादीपति के अंगरक्षक माने जाते थे। अतः आपका शाहपुरा जाना आवष्यक भी था।

अतः अपने गुुरू भाई साध श्री धमण्डीराम जी को धार्मिक पुस्तकें आदि संभला कर आप शाहपुरा पधार गये। वहां चुनाव में आपका ही नाम आ गया। इस प्रकार मिगसर बुद 2, शुक्रवार सं. 1954 को सन्त सेवक, राजाधिराज आदि सबने मिलकर आपको गादी पर विराजित किया। गादी पर आसीन होने के बाद आपने रामस्नेही सम्प्रदाय का बहुत प्रचार प्रसार किया। कथा करने की शैली बहुत प्रभावपूर्ण थी। जिस प्रकार श्रावण भादवा के महिनों में घनघोर घटा गर्जन करती है और सुख देती है। उसी प्रकार आप गर्जना के साथ राम नाम का रस पिलाते थे। आप वेद वेदांत के भी महान विद्वान थे। धर्म प्रचारार्थ आपने पैदल भ्रमण कर सर्वत्र भक्ति रस की गंगा बहाई और लोगों को राम रस पिलाया।

संत समाज पर आपकी बडी कृपा थी। संतों के प्रति आपका इतना स्नेह था कि कभी कभी तो फूलडोल उत्सव के अवसर पर आप कमर बांध कर पंगत में संतों को प्रसाद परोसते थे। छोटे छोटे संतों की आप अंत्याक्षरी कराया करते थे। जो हारते उनका उत्साह बढाने हेतु आप स्वयं उनकी ओर बोलते। इस प्रकार प्रत्येक संत को आप उत्साहित करते रहते थे। इस कारण आपको संक्षेप में ‘दयासागर‘ नाम से सम्बोधित करते थे।  आप वास्तव में दया के सागर ही थे। आपके समय में संत भी खूब हुए आपका प्रथम चातुर्मास सं. 1955 में भीलवाडा में, सं. 56 के चातुर्मास आपने शाहपुरा में, सं. 59 का चातुर्मास आपने खाचरोद जिला उज्जैन मध्यप्रदेष में, सं. 60 का चातुर्मास अहमदाबाद, बडा राम

द्वारा, गुजरात में तथा सं. 61 का चातुर्मास शाहपुरा में ही हुआ। अषाढ सुद 4 गुरूवार सं. 1962 को आप ब्रह्मलीन हुए। आपका शासन 7 वर्ष 7 महिना 18 दिन का रहा। आपके समय में दिल्ली केे भक्तों ने राम निवास धाम में ‘रामझरोखा‘ नामक महल बनवाया। भीलवाडा में भी वर्तमान में आचार्य श्री जिस महल में विराजते हैं उसका निर्माण हुआ। आपकी षिष्य परम्परा चली थी। पर अब नहीं है आपके स्थान लष्कर व सीतामऊ है।

दमन करो मन कामना, याद करो मन राम।

राजस को सब मारकर, ममता से निष्काम।।

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