श्री रामजन्न जी महाराज की आरती
आरती तेरी अन्तरयामी, पूरण ब्रह्म राम घण नामी।।टेर।।
कारण सबको करूणासागर, ध्यावे ताही मिटे दुःख आगर।।1।।
होय सुख्यारी थारी शरणा, करूणाकर मेटो मम मरणां।।2।।
कीरती रसना राम उचारूं, एक पति-व्रत उरमें धारू।।3।।
अनन्त लोक ब्रहमाण्ड अनंता, तुमरो वार पार नहीं अंता।।4।।
ऐसे स्वामी राम हमारे, रामजन्न को पार उतारे।।5।।