श्री निर्भयराम जी महाराज की आरती
आरती अलख पुरूष अविनाषी,
सेवत तांहि सकल दुःख जाषी।।टेर।।
प्रथम रसन रट अमृत पीजे,
तज अवगुण गुण को गह लीजै।।1।।
शील दया समता उर धारो,
गुरू की आज्ञा कबहु न टारो।।2।।
रहे अचाहि वृति निराषा,
गह सर्वज्ञ राम विष्वासा।।3।।
इस विधि आरती जो कोई करि है,
निर्भयरााम तन फेर न धरि है।।4।।