श्री जगरामदासजी महाराज की आरती
आरती अलख निरंजन तेरी,
तुम चरणों में लज्जा मेरी।।टेर।।
बहु अपराध पार नहीं स्वामी,
सो सब जानों अन्तर्यामी।।1।।
जन्म अनेक भरम में आयो,
किरपा कर मोही शरण लगायो।।2।।
बिरद् रावरो कहां लग वरणूं,
शीव सनकादिक करि है निरणु।।3।।
जगरामदास यह आरती गावे,
तुमरे चरण कमल चितलावे।।4।।